धर्म और विज्ञान {RELIGION AND SCIENCE}

 

धर्म और विज्ञान 

इस जीवन को जीने के लिए दोनो धर्म और विज्ञान महत्वपूर्ण है।यह दोनो एक दूसरे से मिले हुए हैं,सिर्फ आध्यात्म से ही जीवन व्यतित नहीं किया जा सकता ना ही विज्ञान से तो इन दोनों को स्थिर रखते हुए हमें जीवन व्यतित करना चाहिए।

विज्ञान की परिभाषाः

उद्दारण के लिए एलवर्ट इंनसटाईन नामक एक वैज्ञानिक नें 1905 में थियूरी आफ् रिलेटिवीटी दी जिसमें उन्होनें कहा की इस पूरे ब्रहान्ण्ड में सभी चिज़ें सामानांतर चलती हैं और लोगों नें इसे सच मान लिया और कई सालों तक इसी विशवास पर टिके रहे फिर कुछ सालों बाद दो वैज्ञानिक आए ,उन मे से एक वैज्ञानिक भारत से था,उन्होनें कहा की इस पूरे ब्रहान्ण्ड मे सभी चिज़ें सिधी चलती हैं तो लोगों ने इस तथ्य को मानना शुरू किया।

1808 में जान् डेलटन नामक एक वैज्ञानिक नें एटम का अविष्कार किया उसनें कहा की एटम में सिर्फ न्यूक्लियस होता है और कुछ नही फिर कई सालों तक लोगो नें इसे ही सत्य माना और इसी तथ्य पर एटम को पहचाना फिर 1897 में जेजे थौमपसन नामक एक वैज्ञानिक आया उसनें कहा की एटम के अंदर इलेकट्रिक चार्जिस भी होते हैं उसने एटम से विजली पास करते समय देखा की इसमें तो साकारात्मक और नाकारात्मक चार्ज भी होते हैं फिर लोगो नें इस तथ्य पर विशवास करना शुरू कर दिया तो विज्ञान दिन प्रतिदिन बदलता रहता है परन्तु आध्यात्म विज्ञान से बहुत अलग है जो की स्थिर है विज्ञान आपको भौतिकवादी चिज़ों से खुशी दे सकता है लेकिन अध्यात्म आपको बिना भौतिकवादी चिज़ों के असली और दीर्घ काल तक खुशीयाँ दे सकता है।

अध्यात्म और धर्म की परिभाषाः

अगर हम अध्यात्म की बात करें तो हमारे दिमाग को अगर पूरी तरह से हम इस्तेमाल करना चाहें तो यह केवल अध्यात्म के द्वारा ही किया जा सकता है और भी बहुत सी चिज़ें अध्यात्म से ही पाई जा सकती है।

उद्दारण के लिएः

लोग आत्माओं,भूत प्रेतों ,पिशाचों में विशवास करते हैं लेकिन इसका हल सिर्फ अध्यात्म नें किया है क्योंकी 1989 तक विज्ञान के पास इस चिज़ को साझा करनें के लिए कोई सबूत ही नहीं था मगर भारत के ग्रथों में प्राचिनकाल से ही इन चिज़ों के बारे में लिखा गया है।

विज्ञान नें 1989 में इस विषय पर काम करना शूरू किया जिसको हम परामनोविज्ञान के नाम से जानते हैं जे.वी. राईन द्वारा परामनोविज्ञान का आरंम्भ हुआ और अभी तक विज्ञान नें इस विषय में कुछ ज्यादा तरक्की नहीं की है।

अंत मे मैं यही कहना चाहूँगा की एक अच्छा और सुखी जीवन व्यतित करनें के लिए दोनों अध्यात्म और विज्ञान आवश्यक है।

धन्यवाद

-श्रेयास्कर नेगी

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